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कौन है?-

निर्मोही ने पहली बार माँ का ऐसा रुप देखा था। आक्रोश के उबाल से उसकी माँ का चेहरा धधक रहा था।  "आई एम सोरी बेटा, मेरा दिमाग ठिकाने नही है। मेरे बर्ताव का बुरा मत लगाना।" "कोई बात नही मॉम, मैं आपको समझ सकती हूँ।" निर्मोही ने सहानुभूति के साथ कहा था। मेरे लिए तो आप ही मेरा सबकुछ हो।" "यस माय स्वीट हार्ट! तुम भी तो मेरे जिगर का टुकडा हो।" गंगा की आवाज नम थी। माँ को पीघलते देख निर्मोही बात पलटने के इरादे से बोल उठी, "मैं और आरव तुम्हारे सपने को सुनना चाहते हैं, बताओ ना माँ।  ऐसा कौन सा सपना है जो तुम मेरी तरह बार-बार देखती रही हो? हम सुनने को बेताब है।" "ठीक है आज दिल का बोझ हल्का कर देते हैं। हम मानते हैं कि कोई भी सपना बेवजह नहीं होता। उसका कोई ना कोई मतलब जरूर होता है। बस उन सपनों के रहस्यों को समझने वाला होना चाहिए।" कहते हुए गंगा सपनों के दृश्यों को सिनेमा के स्क्रीन की तरह अपनी बंद आँखों के सामने महसूस करने लगी। आरव और निर्मोही टकटकी लगाए गंगा के मुख को ताकने लगे। सपनों के बीच उलझी हुई एक कहानी जैसे रूबरू होने को तैयार थी। *****   *******  ******** आदम कद आईने के सामने वह अपने रूप का जलवा लेकर खड़ी हो गई। पता नहीं क्यों आज उसे आईना पहचानने से इंकार कर रहा था, या फिर वही खुद को पहचान नहीं पा रही थी? उसका रूप कयामत ढा रहा था। उसने अपने मक्खन जैसे गालों पर अपना हाथ रखा। और कोई नहीं बल्कि वही थी। बस बाल कुछ अलग तरीके से बंधे हुए थे। लंबे बालों की चोटी का आखरी सिरा नितंब की ढलान पर अठखेलियाँ कर रहा था। कपड़े भी ऐसे पतले और जालीदार थे कि उसका गोरा बदन जैसे शिकार करने को तैयार था। ललाट के बीचो बीच सेंटर में उसने सर्पाकार बिंदी लगाई। कानों की बूटियों में चमचमाते डायमंड्स के झूलते हुए इयररिंग्स लगाए। उतरी हुई ब्लैक नेल पॉलिश पर उसने वापस रंग चढ़ाया। गोरी कलाइया में उसने काँच की चूड़ियाँ पहन ली। सॉफ्ट चेहरे पर हल्का मेकअप किया। जिससे कि नूरानी चेहरे की रंगत और उसके ओरिजिनल सौंदर्य को हानि न पहुँचे। नपे-तुले जिस्म पर जालीदार चनिया चोली में उसका रूप और भी ज्यादा खिल रहा था। वह आज किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी। इतना सिंगार करने के पीछे भी एक खास वजह थी। तैयार होने में आज उसे कुछ ज्यादा ही समय लग गया। उसकी नीली आँखें बार-बर दरवाजे पर जाकर रुक जाती थी। उसकी बेसब्र आँखों को आज किसी का इंतजार था। जरा सी आहट से वह बार-बार चौक जाती थी। आखिरकार उसका इंतजार खत्म हुआ। सामूहिक कदमों की आवाज सुनकर उसका दिल धड़क उठा। एक बार फिर उसने खुद को सिर से लेकर पाँव तक आईने में देखा और अपने कत्थई होठों पर लिपस्टिक का आखिरी टच देकर चेहरे पर मुस्कान सजाये वह दरवाजे की और आगे बढी।  दरवाजे पर पाँच-छह लोग खड़े थे। जिसमें सब से आगे तेजस्वी चेहरे का मालिक अपनी मजबूत काया लिए उसके सामने उपस्थित था। जिसका इंतजार उसकी आँखें कर रही थी। शाही लिबास में राजा साहब का मजबूत शरीर काफी जच रहा था। उनकी उम्र तकरीबन 40 के आसपास रही होगी फिर भी वह बिल्कुल नौजवान लग रहे थे। उनके माथे पर रहा शाही ताज और बदन पर रहे आभूषण उनके शाही ठाठ का जलवा पेश कर रहे थे। अप्सरा जैसी सुंदरी ने उनकी मजबूत भुजाओं पर नजर फेरी। महाराज की बगल में सफेद धोती और कुर्ते में पंडित जी खड़े थे उनकी पेशानी पर चंदन से तिलक लगा हुआ था। जबकि दो-तीन दासियाँ खड़ी थी। जिनके हाथों में सोने के थाल थे जिस में उसके लिए कीमती सौगातें लाई गई थी। जबकि सबसे पीछे खड़ी दासी के हाथों में सफेद रंग के मखमली कपडे में एक नन्हीं सी जान लिपटी हुई थी। "मंजूलिका...!" एक प्रभावी आवाज उसके कानों में गूँज उठी। जिस आवाज को सुनने के लिए शायद उसके कान तरस गए थे। उसने अपनी गर्दन उठा कर नीली आँखों से उस प्रभावी चेहरे को देखने लगी। "महाराज आइए, और अपने पवित्र कदमों से मेरे घर की चौखट को पावन कीजिए।" मंजूलिका गदगद हो उठी।  "मेरा यहाँ आने का मकसद तो तुम समझ ही गई होगी?" महाराज ने मुद्दे की बात कही। "इस राज्य की एक अहम जिम्मेदारी तुम्हें सौंपी गई है जिसको आज तलक तुमने बखूबी निभाया है।" "मेरा सौभाग्य है राजन, कि मेरे जैसी तुच्छ स्त्री को आपने  इस लायक समझा।" मंजूलिका के शब्द भीग चुके थे। "तुम्हारी कार्यप्रणाली से मैं अत्यंत खुश हूंँ।  ----प्रभावी हूँ। परोक्ष रहकर भी तुमने राज्य की सुरक्षा के लिए अहम भूमिका निभाई है। इस कार्य के लिए हमेशा हम तुम्हारे एहसानमंद रहेंगे। फिर भी राज्य की ओर से तुम्हें यह छोटा सा तोहफा दिया जाता है।" कहकर महाराज ने दासियों को इशारा करके कीमती खजाने से भरे थाल घर में रखवा दिए। अलंकार और कीमती रत्नों से भरे हुए थाल को देखने के बाद मंजूलिका सफेद मखमली कपड़े में छोटी बच्ची को लेकर खड़ी दासी से मुखातिब हुई। "लाइए, मेरा मेहमान मुझे सौंप दीजिए।" "जैसी आपकी आज्ञा महाराज।" कहकर सिर झुका कर छोटी बच्ची के गालों को सहलाने लगी। नवजात बच्ची का रुदन मंजूलिका के रोम-रोम को झंकृत कर गया। हमेशा की तरह इस बच्ची की परवरिश का जिम्मा हकूमत उठाएगी। पंडित जी ने इस बच्ची की कुंडली में दोष दिखाकर अपना कार्य कर लिया है, अब बाकी की जिम्मेदारी तुम्हारी बनती हैं मंजूलिका।  "मैं अपनी जवाबदारी पूरी ईमानदारी से निभाऊंगी महाराज की आप बेफिक्र रहें।" मंजूलिका ने दो हाथ जोड़कर शीश झुका लिया। एक अद्भुत व्यक्तित्व मंजूलिका के द्वार से वापस मुड़ गया। मंजुलिका की नजरों से पंडित जी का कुटिल हास्य छुपा न रह सका। मंजूलिका को एक क्षण के लिए स्वार्थी पंडित पर क्रोध आया। उसके बदन में खौफ की एक सिहरन दौड़ गई। मंजूलिका सिर्फ कसमसाकर रह गई। क्योंकि वह भी तो उसी नाव में बैठी थी जिसमें पंडित बैठा था। वह बात और थी कि मंजूलिका यह काम बेमन से कर रही थी। इस वक्त उसके मन को किसी अनजाने खौफ ने घेर लिया था।  नन्हीं कली जैसी बच्ची के गाल को चुमते हुए वह मन ही मन बोल उठी, हे परमेश्वर मुझे माफ करना। एक और जिंदगी मेरे कारण खतरे में है।" ठीक उसी वक्त मंजूलिका के गाल पर किसी तरल प्रवाही की बूंदे गिरते ही वह चौक गई। उसे लगा बच्चे की लार उसके गाल पर गिरी है। तब मंजूलिका ने अपने हाथ में सफेद कपड़े में लिपटी मक्खन जैसे नन्हीं सी जान पर नजर डाली तो मंजूलिका उछल पड़ी। उसके बदन में एक हल्की कंपकंपी दौड़ गई। मखमली कपड़े में लिपटा हुआ बच्चे का शरीर बिल्कुल हरा हो गया था। उसकी आँखों की पुतलियाँ गायब थी। उसके छोटे-छटे कत्थई होठों के बीच से छोटी सी जिबान स्प्रिंग की तरह लार के साथ उछलकर मंजूलिका के गालों को छू गई।  घिन और दहशत के मिश्र भाव लिए मंजूलिका ने बच्ची को जमीन पर पटक दिया। ********  *******

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2 Comments

madhura

27-Sep-2023 10:13 AM

Awesome

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Gunjan Kamal

27-Sep-2023 08:57 AM

👏👌

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